"रौशन्" ने यहाँ जश्न्-ए चराग़ाँ नहीँ देखा
शब्नम् को रुख़्-ए गुल् पॆ फ़ुरोज़ाँ नहीँ देखा
ज़ुल्फ़ोँ को तेरी किस् ने परेशाँ नहीँ देखा
फिर् तुझ् पॆ फ़िदा हो न , वॊ इन्साँ नहीँ देखा
आए हैँ नज़र् सह्न्-ए गुलिस्ताँ मेँ कई रंग्
पर् तुझ् सा कोई रश्क्-ए बहाराँ नहीँ देखा
सद्योँ से हूँ इक् रिश्तः-ए उम्मीद् पॆ क़ाइम्
उन् को मगर् इस् तर्ह् गुरेजाँ नहीँ देखा !
यूँ वर्नः भटक्ता न बयाबाँ मेँ वॊ , यारो !
"मज्नूँ" ने मेरा चाक्-गिरीबाँ नहीँ देखा
गो ऽऐब् हैँ तुझ् मेँ कई , इस् बज़्म्-ए सुख़न् मेँ
"रौशन्" तेरी टक्कर् का ग़ज़ल्-ख़्व़ाँ नहीँ देखा
जश्न्-ए चराग़ाँ = festive assembly of lamps.
शब्नम् = dew.
रुख़्-ए गुल् = face/cheek of rose.
फ़ुरोज़ाँ = shining, resplendent.
परेशाँ = scattered; disordered; dishevelled.
फ़िदा होना = to be devoted, to be sacrificed.
सह्न्-ए गुलिस्ताँ = rose garden.
रश्क्-ए बहाराँ = envy of spring season(s).
रिश्तः-ए उम्मीद् = thread of hope.
क़ाइम् = steadfast; persevering.
गुरेजाँ = fleeing; avoiding, shunning.
वर्नः = otherwise, or else.
बयाबाँ = desert, wilderness.
चाक्-गिरीबाँ = rent collar (fig. slit neck).
गो = although, notwithstanding that.
ऽऐब् = defect(s).
बज़्म्-ए सुख़न् = (lit.) assembly of discourse, (idm.) a literary gathering.
ग़ज़ल्-ख़्व़ाँ = Ghazal reciter.
Friday, 30 April 2010
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4 comments:
ज़ुल्फ़ोँ को तेरी किस् ने परेशाँ नहीँ देखा
फिर् तुझ् पॆ फ़िदा हो न , वॊ इन्साँ नहीँ देखा
वाह-वा !!
ग़ज़ल वाक़ई बहुत ही नफ़ीस और नाज़ुक़ होती है ,,
कहते वक्त भी,,,पढ़ते वक्त भी ,,
और महसूस करते वक्त भी
आपका ये शेर पढ़ कर तो यही महसूस होता है
और एक ख़ास बात ,, वो ये कि अपने मतले में ही
तख़ल्लुस का इस्तेमाल निहायत खूबसूरती से किया है
बहुत पहले कभी ऐसी ग़ज़ल कभी पढी होगी,,यद् नहीं,,
शायद "सौदा" साहब की कोई ग़ज़ल रही होगी
एक दिल-फरेब , मुरस्सा ग़ज़ल के लिए
मेरी दिली दाद कुबूल फरमाएं
'मुफ़लिस'
dkmuflis.blogspot.com
जनाब-ए "मुफ़्लिस" साहिब,
मैँ आप की दाद का बे-हद्द मम्नून हूँ । ऐसी हौसलः-अफ़्ज़ाई ही से तो शाऽइर का कलाम 'सार्थक' होता है । बहुत बहुत शुक्रिया ॥
तख़ल्लुस को मत्लॆऽ मेँ शायद "मीर" और "ज़ौक़" ने भी इस्तॆऽमाल किया है । और अगर याद-दाश्त धोका नहीँ दे रही , तो मैँने ऐसी मिसाल (मुस्तफ़ः) "ज़ैदी" के कलाम मेँ भी देखी है । यक़ीनन और शाऽइर भी होँगे जो अब याद नहीँ आ रहे ॥
मुख़्लिस ,
रौशन
कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात होगी. सच !!
maqte-matle....ke fer mein naa padein to ..
ghazal khoobsoorat hai...
betakhallus isliye....
jaane dijiye......
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