Friday, 22 June 2007

ग़ज़ल् ३९

मुझ्‌से पूछो न ज़माने की हक़ीक़त् यारो
तुम्‌ने भी रक्खी शराफ़त् से ऽअदावत् यारो

इक् नज़र् देख्ते तो होती क़ियामत् यारो ?
या यही तर्ज़-ए तग़ाफ़ुल् है महब्बत् यारो

पय्-ए साक़ी से लिपट् कर् जो कभी ग़श् खाना
रिन्द्-ए काफ़िर् की नज़र् मेँ है ऽइबादत् यारो

देख् कर् उस् मॆह्-ए नौ की कज्-अदाएँ हर्-सू
छोड़् दी हम् ने महब्बत् मेँ शराफ़त् यारो



हक़ीक़त् = essence; truth, fact; state.
शराफ़त् = nobility.
ऽअदावत् रख् ना = to bear enmity (to), to bear malice (towards)
क़ियामत् = resurrection; tumult; a great calamity.
तर्ज़् = form; manner, style.
तग़ाफ़ुल् = neglect, indifference.
पय्-ए साक़ी = foot of the cupbearer.
ग़श् खाना = to swoon, to faint; to be enamoured (of), to fall in love (with).
रिन्द् = rogue; reprobate, drunkard, libertine.
काफ़िर् = infidel, impious.
ऽइबादत् = worship, adoration, devotion.
मॆह्-ए नौ = new moon; (met.) young/new beloved.
कज्-अदा = crooked manner.
हर्-सू = in every direction.


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