Tuesday, 1 March 2005

ग़ज़ल् ३५ (नज़्र-ए शॆल्ली)

इक् दिन् तो मेरी जान् सताने के लिए आ
झुठा ही सही , प्यार् जताने के लिए आ

(क़ित्ऽ)
तू मुझ्‌से ख़फ़ा कब् है ? यॆः सब् कल् की हैँ बातेँ
ऐसी कोई उम्मीद् दिलाने के लिए आ
कब् रिश्तः-ए उम्मीद् हुआ बाऽइस्-ए तस्कीन्
फिर् भी कोई उम्मीद् दिलाने के लिए आ

क्या चीज़् है यॆः ज़ौक़्-ए महब्बत् मैँ बता दूँ
दिल् अप्‌ना मेरे दिल् से मिलाने के लिए आ

लौटा हूँ तेरी बज़्म् से बा-हाल्-ए शिकस्तः
बस् नाम् को ज़िन्दः हूँ , मिटाने के लिए आ

याँ किस् को ख़बर् थीँ सर्-ए मंज़िल् की बलाएँ
ऐ रॆह्‌बर्-ए फ़र्ज़ानः , बचाने के लिए आ

दिल् टूट् ही जाए वले "रौशन्" की यॆः ज़िद् है
''आ ! फ़िर् से मुझे छोड़् के जाने के लिए आ'' *

[*] जनाब् ऎह्मद् फ़राज़् साहिब् की ग़ज़ल् "रंजिश् ही सही , दिल् ही दुखाने के लिए आ" की नज़्र्



रिश्तः = thread; connection; relation; affinity.
बाऽइस् = occasion, cause, motive; subject; means (of).
तस्कीन् = calming; consolation, comfort, peace (of mind).
ज़ौक़् = taste, delight, pleasure.
शिकस्तः = broken; defeated, routed; weak, infirm.
बा-हाल्-ए शिकस्तः = in a broken state.
सर्-ए मंज़िल् = beginning of journey.
बला = trial, affliction, calamity, evil.
रॆह्‌बर् = guide, conductor.
फ़र्ज़ानः = learned, wise; excellent, noble, honourable.
वले (contr. of व-लेकिन्) = but, yet, however, for all that.


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