Monday, 9 June 2003

ग़ज़ल् ३२ (ऎऽतिज़ार् नामः)

ग़लत् था मेरा कहा , सो मुझे मॊऽआफ़् करो
नहीँ तो शौक़् से तुम् मुझ्‌से इन्हिराफ़् करो

तुम्हारा दिल् न दुखे , इक् इसी का क़स्द् किया
ख़ुलूस्-ए दिल् का मेरे कुछ् तो इत्तिसाफ़् करो

सुनो ! मुझे नहीँ मऽलूम् मेरे दिल् का हाल्
तुम्हेँ जो मुझ्‌से लगी है , तो ऎऽतिराफ़् करो

मदार् क्योँ न तुझी को करूँ , बुत्-ए ख़्व़ुद्‌बीन् !
कहा तो तूने ही था , "जाओ अब तवाफ़् करो"

वॊः तेज़् सूर्मा लगा कर् कहेँ, << हटो "रौशन्"
निगाह्-ए नाज़् के मारोँ का यूँ ज़ॊऽआफ़् करो >> !



मॊऽआफ़् कर्‌ना = to absolve, forgive.
शौक़् से = with pleasure, cheerfully.
इन्हिराफ़् = shunning, avoiding.
(-से) इन्हिराफ़् कर्‌ना = to shun, avoid.
क़स्द् = intention; endeavour; desire, inclination.
(-का) क़स्द् कर्‌ना = to form the design (of); to intend; to pursue.
ख़ुलूस् = purity; sincerity, friendship, affection.
इत्तिसाफ़् = description; praise.
लगी = affection; longing; hunger.
ऎऽतिराफ़् = acknowledgement, confession.
मदार् = axis; centre; orbit.
बुत् = idol; beloved, mistress.
ख़्व़ुद्‌बीन् = self-conceited, vain, proud.
तवाफ़् कर्‌ना = to make the circuit (of a holy place).
तेज़् = sharp; penetrating, piercing; strong; passionate.
सूर्मा = collyrium of antimony (applied to eyes).
नाज़् = coquetry, amorous playfulness; dalliance; pride, whims.
ज़ॊऽआफ़् = speedy or sudden death.


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