Friday 23 May 2003

ग़ज़ल् ३०

दिल् जिगर् तेरे , सितम्‌गर् , नहीँ देखे जाते
यॆः तराशे हुए पत्थर् नहीँ देखे जाते

हाँ , सितम्‌गर् नहीँ इक् तू ही जहाँ मेँ , लेकिन्
तुझ्‌से ज़ालिम् भी तो अक्सर् नहीँ देखे जाते

हम् को मंज़ूर् थी जो नीम्‌-निगाही कल् तक्
जाने क्योँ आज् वॊः निश्तर् नहीँ देखे जाते

कोई आँसूँ न गिरे , आह् न कोई निक्‌ले
तुम्‌से क्या ऽआशिक़्-ए मुज़्तर् नहीँ देखे जाते ?

क़द्द्-ओ गेसू ही रहेँ उन्‌को मुबारक् , जिन्‌से
रसन्-ओ दार् के मह्शर् नहीँ देखे जाते

ख़त्म् अश्ऽआर्-ए ग़ज़ल् कर् दे ख़ुदारा ! "रौशन्"
तेरे शक्वोँ के यॆः दफ़्तर् नहीँ देखे जाते



सितम्‌गर् = tyrant, oppressor.
तराश्‌ना = to cut; to carve.
नीम्-निगाही = state of eyes half-open.
निश्तर् = lancet(s).
मुज़्तर् = afflicted; restless.
क़द्द्-ओ गेसू = figure and tresses.
रसन्-ओ दार् = rope and gallows.
मह्शर् = place(s) of congregation.
अश्ऽआर् = verses.
ख़ुदारा = for God's sake.
शक्वः = complaint.
दफ़्तर् = scroll(s); volume(s).


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