Friday, 25 April 2003

ग़ज़ल् २८

शौक़्-ए अन्दोह्-ए ऽआशिक़ी है अभी
शग़्ल्-ए दिल् , फ़िक्र्-ए शाऽइरी है अभी

यूँ ही क़ाइम् रहे ज़िया-ए हुस्न्
दिल् की ज़ुल्मत् मेँ रौश्‌नी है अभी !

यूँ तऽअल्लुक़् किया है क़त्ऽ उस्‌ने
मैँ ने माना कि दोस्ती है अभी

एक् ऽअर्सः हुआ मनाके तुम्हेँ
फिर् भी कुछ कुछ फ़ुसूर्दगी है अभी

शॆऽर् बे-कार् हैँ तो क्या "रौशन" ?
दाद्-ए अर्बाब्-ए मूसिक़ी है अभी



शौक़् = desire; inclination, love; zeal.
अन्दोह् = grief, anxiety, trouble.
शग़्ल् = occupation, employment; diversion, pastime.
फ़िक्र् = deliberation; concern.
शाऽइरी = the art or practice of poetry.
क़ाइम् = firm, established; lasting, perpetual; steadfast.
ज़िया = light; brilliancy, splendour.
हुस्न् = goodness; beauty.
ज़िया-ए हुस्न् = (bright) brilliance of beauty.
ज़ुल्मत् = darkness, obscurity.
रौश्‌नी = light; illumination; brightness.
तऽअल्लुक़् = attachment; relation; regard.
क़त्ऽ कर्‌ना = to cut short; to break off.
ऽअर्सः = period, duration;
फ़ुसूर्दगी = frigidity, coldness.
दाद् = equity; justice.
अर्बाब् = possessors, lords, masters.
मूसिक़ी = music.
दाद्-ए अर्बाब्-ए मूसिक़ी = due praise from the masters of music.


No comments: