Tuesday, 17 December 2002

ग़ज़ल् २४

मिल् गया मय्‌कदः , मिट् चुकी आर्ज़ू
फिर् भी , ऐ मय्‌कशो , किस् की है जुस्त्‌जू

या ख़ुदा ! तुम् रखो तब् मेरी आब्रू
ग़श् न आए मुझे जब् वॊः होँ रू-ब-रू

ऽअह्द्-ओ तद्बीर् कर् ऽइश्क़् मेँ , ऽआशिक़ो ,
मिस्ल्-ए "फ़र्हाद्" तेरी भी है कोह्-ओ जू

दो जहाँ ताक् मेँ हैँ : "यॆः क्या हो गया" ?
इक् मुसल्मान्-ओ बुत् हो गए रू-ब-रू !

चाहिए हम् को गुल्‌चीन् इक् क़द्र्दाँ
हम् गुलोँ मेँ छिपे हैँ सिवा रंग्-ओ बू !

छेड़् दो यॆः ग़ज़ल् , मिस्ल्-ए "रौशन्" , अगर्
"शर्मिला" सा कोई देख् लो ख़ूब्-रू



मय्‌कदः = tavern.
आर्ज़ू = wish, desire; hope; expectation.
मय्‌कश् = a wine-bibber.
जुस्त्‌जू = search, quest.
आब्रू = (lit.) brightness of face; honour, reputation; grandeur; pride.
ग़श् = swoon, stupor, fainting.
रू-ब-रू = face-to-face.
ऽअह्द् = will, testament; contract; vow; time; lifetime.
तद्बीर् = forethought; deliberation; plan; provision.
मिस्ल् = like, resembling.
कोह् = mountain, hill, hillock.
जू = river, stream; brook.
ताक् मेँ रह्ना = to be on the look out or watch (for).
बुत् = idol; mistress, beloved.
गुल्‌चीन् = a flower-gatherer; a gardener; a florist.
क़द्र्दाँ = a just appreciator, judge; a patron.
सिवा = more; better.
रंग्-ओ बू = colour and scent.
ख़ूब् = splendid, beautiful; pleasing.
रू = face; aspect.



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