Thursday 13 November 2014

ग़ज़ल् ५४

तन्हाइयोँ की बात् न अब्‌के करो जनाब्
जाम् उठ् न जाए फिर् से न बद्‌नाम् हो शराब् [१]

ग़ाज़ः लगा के रुख़् पॆ जो निक्‌ला है माह्‌ताब् [२]
इस् चौध्‌वीँ की रात् तो हर् रिन्द् हो ख़राब्

"ऐ रह्मत्-ए तमाम्! मेरी हर् ख़ता मुऽआफ़्" [३]
आँखोँ के साम्‌ने है सरक्‌ता हुआ निक़ाब

साक़ी, वॊः सर झुकाके तो आता है मय्‌कदे
ज़ाहिद् मेँ पर् नहीँ है तुझे देख्‌ने की ताब्

इक् दिन् तुम्हारे क़ब्ल् न इक् दिन् तुम्हारे बऽद् !
मेरी हयात् का हुआ जाता है इन्तॆख़ाब्

चम्‌केँगे अब्‌की बार् सितारे नसीब् के
"रौशन्", निगाह्-ए यार् की देखेँ जो आब्-ओ-ताब्

[१] मेरे दोस्त् 'सागर् पवार्' के कहे एक मज़्मून् से वाबस्तः
[२] एक् Total Lunar Eclipse की तरफ़् इशारः
[३] 'जिगर् मुरादाबादी' की ग़ज़ल् "साक़ी की हर् निगाह् पॆः बल्खाके पी गया" से



तन्हाई = loneliness, solitude.
जनाब् = title of respect.
जाम् = goblet, drinking vessel.
ग़ाज़ः = rouge for the face.
रुख़् = face; cheek.
माह्‌ताब् = the moon.
रिन्द् = rogue; drunkard, profligate.
रह्मत् = mercy; (divine) pardon; blessing.
तमाम् = complete; perfect; whole.
ख़ता = fault; offence; failure.
निक़ाब् = veil (for the face).
साक़ी = cup-bearer.
मय्‌कदः = tavern.
ज़ाहिद् = devout; (religious) zealot.
ताब् = strength, capability.
क़ब्ल् = prior (to), before.
हयात् = life.
इन्तॆख़ाब = extract; choice.
आब्-ओ-ताब् = brightness, lustre; majesty, glory.



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