Saturday, 1 April 2000

ग़ज़ल् ३ (साहिर् की याद् मेँ)

फिर् उसी तर्क्-ए मुलाक़ात् पॆ रोना आया
फिर् उन्ही अन्‌कहे जज़्बात् पॆ रोना आया

तुम् कहीँ साथ् मेरा छोड़् न दो , ऐ यारो !
ऐसे कित्ने ही ख़यालात् पॆ रोना आया

अज्नबी के जो सितम् थे वॊः तो हम् सह् भी गए
बस्किः तेरे दिए सद्मात् पॆ रोना आया

हम् तो कह्‌ते थे कि रोने से ही बर्‌सेँगे अब्र्
आज् क्यूँ हम्‌को ही बर्सात् पॆ रोना आया

"कौन् रोता है किसी और् की ख़ातिर्" , "रौशन" ?
तुझ्‌को "साहिर्" कि इसी बात् पॆ रोना आया !




तर्क् = abandonment; relinquishment, renunciation; abdication.
मुलाक़ात् = meeting; conversation; carnal intercourse.
जज़्बात् = pl. of जज़्बः.
जज़्बः = passion; violent desire.
ख़यालात् = pl. of ख़याल्.
ख़याल् = thought, imagination; apprehension; delusion.
अज्नबी = stranger.
सितम् = tyranny, oppression, injustice.
बस्किः = although; whereas.
सद्मात् = pl. of सद्मः.
सद्मः = shock; injury; adversity, misfortune, calamity, accident.
अब्र् = cloud.
बर्सात् = rainy season, rain.
(-की) ख़ातिर् = for the sake (of), on account (of), out of consideration or regard (for).



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